मैं भी एक हमसफ़र बनाता उसको तराश कर,
बस मुझको मेरे मिजाज़ का पत्थर ना मिला।
कितनी लम्बी होती हैं ये रातें।
गर ज़िंदगी होती तो पल में निबट जाती
दिल बहलाने के लिये ही गुफ्तुगू कर लिया करो जनाब, मालूम तो मुझे भी है के हम आपको अच्छे नही लगते
दो रोटी के वास्ते, मरता था जो रोज,
मरने पर उसके हुआ, देशी घी का भोज..
न रुकी वक्त की गर्दिश और न जमाना बदला..
पेड़ सुखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला..!
दिल रोज सजता है नादान दुल्हन की तरह
गम रोज चले आते हैं बाराती बनकर
दर्द क्या होता है गरीब से पूछोगे तो पता चलेगा,
अमीर से पूछोगे तो डॉक्टर का ही पता देगा
Kuch cheeze aap chah sakte hai,
paa nahi sakte....
दर्द की जागीर मे रहने की ये ही एक शर्त है,
रात भर रोना और सुबह मुस्कुराना चाहिए