परिंदे भी शुक्रगुजार हैं पतझड़ के ऐ दोस्त
तिनके कहां से लाते, हमेशा बहार जो रहती।
तमाम गिले-शिकवे भुला कर सोया करो यारों
सुना है मौत किसी को मुलाक़ात का मौका नही देती
हक़ीक़त रूबरू हो तो अदाकारी नही चलती,
ख़ुदा के सामने बन्दों की मक्कारी नही चलती.
तुम्हारा दबदबा ख़ाली तुम्हारी ज़िंदगी तक है,
किसी की क़ब्र के अन्दर ज़मींदारी नही चलती!
ज़िन्दगी जीनी हैं तो, तकलीफें तो होंगी...
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वरना मरने के बाद तो, जलने का भी एहसास नहीं होता...
जिद्दी सा बचपन...
उम्र के थपेड़ों ने मजबूरन जवान कर दिया.
चवन्नी की कुल्फियों में शहंशाह हुआ करते थे,
आज दो हजार के नोटों ने परेशान कर दिया!
इस शहर में जीने के, अंदाज़ निराले हैं।
होंटों पे लतीफ़े हैं, आवाज़ में छाले हैं।।
आसमां में मत दूंढ अपने सपनों को, सपनों के लिए ज़मीं भी जरूरी है,
सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है
उम्र ने तलाशी ली तो जेबों से कुछ लम्हे बरामद हुए,
कुछ गम थे, कुछ नम थे, कुछ टूटे तो कुछ सही सलामत थे।
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ ज़िंदगी, मुनासिब होगा तू मेरा हिसाब कर दे।