क्या कहूँ मैं तेरी मोहब्बत को, हकीकत समझूँ या ख्वाब समझूँ...
बेवसी सी है इस सुनसान रात में, खुद को तन्हा या फिर एक मुसाफिर समझूँ...
गलतियां भी इश्क़ की तरह होती है ।
करनी नही पड़ती हो जाती है ।।
क्या हसीन इत्तेफाक़ था तेरी गली में आने का....!!
... किसी काम से आये थे, !!
और किसी काम के ना रहे....!!